Khillar Cow & Bull: Characteristics and Performance of Khillar Cattle
खिल्लार नस्ल की गाय मुख्यतः कर्नाटक के बीजापुर, मध्य प्रदेश के सतपुड़ा और महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पायी है । खिल्लार नस्ल को "मंदेशी", "खिल्लारी" और "थिल्लार" आदि नामों से भी जाना जाता है।
खिल्लार नस्ल की शारीरिक विशेषता
खिल्लार नस्ल के पशु स्लेटी और सफ़ेद रंग में पाए जाते हैं इस नस्ल को Hallikar और Amritmahal नस्ल से उत्पन्न माना जाता है। इनके सिंग दोनो ओर फैले हुए नुकीले और कान छोटे होते हैं। पूंछ लंबी और काली होती है। खूर भी सटे हुए काले होते हैं. कुछ की नाक और खूर लालिमा लिए हुए भूरे रंग की होती हैं। इनका गलंकबल काफी बड़ा होता है। जन्म लेने वाला बछड़ा दो माह तक लाल रंग का होता है, जिसके रंग में बड़ा होने पर बदलाव आ जाता है।
खिल्लार नस्ल की अन्य विशेषता
खिल्लार पशु की चाल तेज और उत्साही होती है। थकान के कोई लक्षण दिखाए बिना इस नस्ल के पशु मीलों तक चल सकते हैं। महाराष्ट्र के सतपुरा क्षेत्र के पेशेवर प्रजनक बड़े पैमाने पर खिल्लार नस्ल के नर बछड़ों को पालते है|
कर्णाटक सरकार ने बन्कापुर में खिल्लार नस्ल के संरक्षण के लिए एक नस्ल संरक्षण केंद्र खोला है. खिल्लार गाये बहोत कम दूध देती हैं.उष्णकटिबंधीय और सूखे क्षेत्र के अनुकूल होने के कारण खिल्लार नस्ल स्थानीय किसानों की पसंदीदा है ।
खिल्लार गाय का दूध उत्पादन
खिल्लार प्रजाति की गाय में दूध देने की क्षमता कम होती है, लेकिन बैल काफी शक्तिशाली और तेजतर्रार होते हैं। बहोत कड़ी मेहनत कर खिल्लार बैल अपने मालिक की पूँजी को बढाता है. इस नस्ल के बैलों की जोड़ी को रखने में इसके मूल उत्पत्ति वाले तथा उससे सठे क्षेत्र के लोग गर्व महसूस करते हैं| ये गाये प्रतिदिन 1 -2 लीटर तक ही दूध देती हैं |
अगर आप इस गाय/ बैल के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो फिर नीचे दिया गया विडियो देखिये
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खिल्लार नस्ल की शारीरिक विशेषता
खिल्लार नस्ल के पशु स्लेटी और सफ़ेद रंग में पाए जाते हैं इस नस्ल को Hallikar और Amritmahal नस्ल से उत्पन्न माना जाता है। इनके सिंग दोनो ओर फैले हुए नुकीले और कान छोटे होते हैं। पूंछ लंबी और काली होती है। खूर भी सटे हुए काले होते हैं. कुछ की नाक और खूर लालिमा लिए हुए भूरे रंग की होती हैं। इनका गलंकबल काफी बड़ा होता है। जन्म लेने वाला बछड़ा दो माह तक लाल रंग का होता है, जिसके रंग में बड़ा होने पर बदलाव आ जाता है।
खिल्लार नस्ल की अन्य विशेषता
खिल्लार पशु की चाल तेज और उत्साही होती है। थकान के कोई लक्षण दिखाए बिना इस नस्ल के पशु मीलों तक चल सकते हैं। महाराष्ट्र के सतपुरा क्षेत्र के पेशेवर प्रजनक बड़े पैमाने पर खिल्लार नस्ल के नर बछड़ों को पालते है|
कर्णाटक सरकार ने बन्कापुर में खिल्लार नस्ल के संरक्षण के लिए एक नस्ल संरक्षण केंद्र खोला है. खिल्लार गाये बहोत कम दूध देती हैं.उष्णकटिबंधीय और सूखे क्षेत्र के अनुकूल होने के कारण खिल्लार नस्ल स्थानीय किसानों की पसंदीदा है ।
खिल्लार गाय का दूध उत्पादन
खिल्लार प्रजाति की गाय में दूध देने की क्षमता कम होती है, लेकिन बैल काफी शक्तिशाली और तेजतर्रार होते हैं। बहोत कड़ी मेहनत कर खिल्लार बैल अपने मालिक की पूँजी को बढाता है. इस नस्ल के बैलों की जोड़ी को रखने में इसके मूल उत्पत्ति वाले तथा उससे सठे क्षेत्र के लोग गर्व महसूस करते हैं| ये गाये प्रतिदिन 1 -2 लीटर तक ही दूध देती हैं |
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Posted by Unknown at 3:54 AM No comments :
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