Red kandhari Cow : Status, Characteristics and performance of Red Kandhari Cattle
लाल कंधारी गाय
लाल कंधारी गाय के प्रजनन क्षेत्र महाराष्ट्र के अहमदनगर, परभणी, बीड, नांदेड़ और लातूर जिले हैं। यह नस्ल कर्नाटक में भी अधिक मात्रा में पायी जाती है. महाराष्ट्र में पाये जाने वाली लाल कंधारी गायों के बारे में मान्यता है कि इस प्रजाति को चौथी सदी में कांधार के राजाओं के द्वारा विकसित किया गया था।
लाल कंधारी को "लखाल्बुन्दा" नाम से भी जाना जाता है।
लाल कंधारी नस्ल की शारीरिक विशेषता
औसत आकर की ये गाये गहरे भूरे अथवा गहरे लाल रंग की होती हैं । लंबे कान नीचे की ओर झुके होते हैं और आंखों के चारो ओर कालापन होता है। सीगें छोटी और दोनों तरफ सीधी लाइन में फैली हुई तथा पूंछ काली व लंबी होती हैं।
चौड़ा माथा, ऊँचा कूबड़ आदि इसकी प्रमुख विशेषता हैं | गायों की तुलना में बैल ज्यादा गहरे रंग के होते हैं. सींग समान रूप से घुमावदार और मध्यम आकार के होते हैं।
लाल कंधारी बैल की विशेषता
लाल कंधारी दोहर उद्देश्य वाली नस्ल मानी जाती है. बैलों को भारी कृषि कार्यों और परिवहन के लिए उपयोग में लाया जाता है।
इन जानवरों को छोटे झुंड में केवल चराई पर व्यापक प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है।
लाल कंधारी गाय का दूध उत्पादन
लाल कंधारी गायें औसत दूध उत्पादन करती हैं | ये गाये प्रतिदिन 1.5 - 4 लीटर दूध देती हैं दूध में औसत वसा प्रतिशत 4.57 होती है. पहले ब्यांत(calving) की अवधि 30-45 महीने और औसत प्रजनन अंतराल 360-700 दिन की होती है।
लाल कंधारी नस्ल लुप्त होने के कगार पर है इसलिए अब इसको संरक्षित एवं लोकप्रिय किया जा रहा है |
अगर आप इस गाय/ बैल के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो फिर नीचे दिया गया विडियो देखिये
अगर कृषि, पशुपालन तथा बकरीपालन के ज्ञान तथा नवीनतम टेक्नोलॉजी से अपडेट रहना चाहते हैं तो कृपया हमें Facebook में Like करना ना भूलें
YouTube में हमारे नए- नए विडियो देखने के लिए यहाँ पर क्लिक करें - Subscribe & Watch video
अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया है तो इसे नीचे दिए गए बटनों द्वारा जरुर "Share" करें
लाल कंधारी गाय के प्रजनन क्षेत्र महाराष्ट्र के अहमदनगर, परभणी, बीड, नांदेड़ और लातूर जिले हैं। यह नस्ल कर्नाटक में भी अधिक मात्रा में पायी जाती है. महाराष्ट्र में पाये जाने वाली लाल कंधारी गायों के बारे में मान्यता है कि इस प्रजाति को चौथी सदी में कांधार के राजाओं के द्वारा विकसित किया गया था।
लाल कंधारी को "लखाल्बुन्दा" नाम से भी जाना जाता है।
लाल कंधारी नस्ल की शारीरिक विशेषता
औसत आकर की ये गाये गहरे भूरे अथवा गहरे लाल रंग की होती हैं । लंबे कान नीचे की ओर झुके होते हैं और आंखों के चारो ओर कालापन होता है। सीगें छोटी और दोनों तरफ सीधी लाइन में फैली हुई तथा पूंछ काली व लंबी होती हैं।
चौड़ा माथा, ऊँचा कूबड़ आदि इसकी प्रमुख विशेषता हैं | गायों की तुलना में बैल ज्यादा गहरे रंग के होते हैं. सींग समान रूप से घुमावदार और मध्यम आकार के होते हैं।
लाल कंधारी बैल की विशेषता
लाल कंधारी दोहर उद्देश्य वाली नस्ल मानी जाती है. बैलों को भारी कृषि कार्यों और परिवहन के लिए उपयोग में लाया जाता है।
इन जानवरों को छोटे झुंड में केवल चराई पर व्यापक प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है।
लाल कंधारी गाय का दूध उत्पादन
लाल कंधारी गायें औसत दूध उत्पादन करती हैं | ये गाये प्रतिदिन 1.5 - 4 लीटर दूध देती हैं दूध में औसत वसा प्रतिशत 4.57 होती है. पहले ब्यांत(calving) की अवधि 30-45 महीने और औसत प्रजनन अंतराल 360-700 दिन की होती है।
लाल कंधारी नस्ल लुप्त होने के कगार पर है इसलिए अब इसको संरक्षित एवं लोकप्रिय किया जा रहा है |
अगर आप इस गाय/ बैल के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो फिर नीचे दिया गया विडियो देखिये
अगर कृषि, पशुपालन तथा बकरीपालन के ज्ञान तथा नवीनतम टेक्नोलॉजी से अपडेट रहना चाहते हैं तो कृपया हमें Facebook में Like करना ना भूलें
अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया है तो इसे नीचे दिए गए बटनों द्वारा जरुर "Share" करें
We would greatly appreciate it if you kindly Share This Post With Your Friends Only If You Think The Post Is Helpful...
★★★★★
Tweet
Your Comment For This Post..?
Posted by Unknown at 6:11 AM No comments :
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment