Goat Farming: Sirohi Goat and its Characterstics
सिरोही बकरी तथा उसकी विशेषताएं
कृषि आजीविका में पशुपालन का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सूखे के क्षेत्र में इसका महत्व और बढ़ जाता है और उसमें भी बकरी पालन सूखे की दृष्टिकोण व छोटे किसानों के लिहाज से काफी प्रभावी है क्योंकि इसमें लागत कम होने के साथ-साथ आजीविका के विकल्प भी बढ़ जाते हैं।
सिरोही बकरी
सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिले में पायी जाती है। यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है। इस नस्ल की बकरी को देवगढ़ी, पर्बत्सार तथा अजमेरी नामों से भी जाना जाता है। सिरोही नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त है।
इस नस्ल के वयस्क नर का औसत शारीरिक वजन 50 किलोग्राम और मादा का वजन 23 किलोग्राम होता है
इसका नाक छोटा परन्तु उभरा रहता है। कान लम्बा होता है। पूंछ मुड़ा हुआ एवं पूंछ के बाल मोटा तथा खड़ा होते हैं। इसके शरीर का बाल मोटा एवं छोटा होता है। यह सलाना एक वियान में औसतन 1-2 बच्चे उत्पन्न करती है। इस नस्ल की बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता है।
इस बकरी की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है और यह विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में भी आसानी से पाली जा सकती है |
हालांकि यह पशु प्रमुख रोगों और संक्रमण प्रतिरोधी मानी जाती है लेकिन पैर और मुँह के संक्रमण से बचाने के लिए पशुओं को टीका करने के लिए सलाह दी जाती है। रहे हैं जिसकी वजह से अब यह नस्ल भारत से विलुप्त होने के कगार पर है ।
सिरोही बकरी
सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिले में पायी जाती है। यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है। इस नस्ल की बकरी को देवगढ़ी, पर्बत्सार तथा अजमेरी नामों से भी जाना जाता है। सिरोही नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त है।
सिरोही बकरी की शारीरिक विशेषता
इसका शरीर गठीला एवं रंग सफेद, भूरा या सफेद एवं भूरे रंग का मिश्रण होता है।इस नस्ल के वयस्क नर का औसत शारीरिक वजन 50 किलोग्राम और मादा का वजन 23 किलोग्राम होता है
इसका नाक छोटा परन्तु उभरा रहता है। कान लम्बा होता है। पूंछ मुड़ा हुआ एवं पूंछ के बाल मोटा तथा खड़ा होते हैं। इसके शरीर का बाल मोटा एवं छोटा होता है। यह सलाना एक वियान में औसतन 1-2 बच्चे उत्पन्न करती है। इस नस्ल की बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता है।
इस बकरी की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है और यह विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में भी आसानी से पाली जा सकती है |
सिरोही बकरी की अन्य विशेषता एवं दूध उत्पादन
यह बकरी प्रतिदिन 0. 5 - 1 लीटर तक दूध देती हैहालांकि यह पशु प्रमुख रोगों और संक्रमण प्रतिरोधी मानी जाती है लेकिन पैर और मुँह के संक्रमण से बचाने के लिए पशुओं को टीका करने के लिए सलाह दी जाती है। रहे हैं जिसकी वजह से अब यह नस्ल भारत से विलुप्त होने के कगार पर है ।
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Posted by Unknown at 6:01 AM No comments :
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