Krishna Cow & Krishna Bull: Characteristics and Performance of Krishna Cow & Bull
कृष्णा नस्ल भारत में कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य में पायी जाती है . इसे "कृष्णावैली" नाम से भी जाना जाता है
ज्यादा जानकारी के लिए नीचे विडियो देखें
कृष्णा नस्ल की शारीरिक विशेषता
इनके मुंह का अगला हिस्सा बड़ा और सिंगें सामान्य से छोटी और ऊपर में अंदर की ओर मुड़ी होती है। मस्तिष्क उभरा हुआ तथा दोनों कान छोटे मगर नुकीले होते हैं। पूंछ जमीन को करीब-करीब छूती हुई काली होती है।
इसका शरीर बड़ा और सुडौल होता है. गाय स्लेटी, भूरेऔर काले रंग की होती है, जबकि बैल गहरे रंग के होते हैं।
कृष्णा नस्ल की अन्य विशेषता
इस भारवाही नस्ल का विकास ओंगोले, गिर, कांकरेज एवं हल्लीकर नस्लों से किया गया है. कृष्णा बैल 2 टन सामान को आसानी से खीच कर ले जा सकते हैं. खुर की बनावट कड़क पथरीली जमीन में चलने के लिए उपयुक्त होती है
इसकी त्वचा में पसीने की ग्रंथियां अधिक संख्या में होती हैं इसलिए ये तेज धुप में लगातार काम कर सकते है. यह एक दोहरे उद्द्येश्य वाली नस्ल होती है बैलों को कृषि कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है.
कृष्णा गाय का दूध उत्पादन
बैल शक्ति और सहनशीलता के लिए जाने जाते हैं वहीँ गाये मध्यम दूध देती हैं. ये प्रतिदिन 4 - 5 लीटर दूध देती है |
इस नस्ल का ब्राज़ील एवं अमेरिकी देशों में बड़े पैमाने में निर्यात हुआ है लेकिन भारत में इसकी संख्या दिन ब दिन घटती जा रही है |काली मिट्टी वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से कार्य करने वाले इन पशुओं की घटती संख्या एक चिंता का विषय है और इसके लिए सरकार तथा लोगों को पहल करनी होगी ताकि इनका उत्थान हो सके |
अगर आप इस गाय / बैल के बारे में और अधिक जानना कहते हैं तो नीचे दिया गया विडियो देखिये
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कृष्णा नस्ल की शारीरिक विशेषता
इनके मुंह का अगला हिस्सा बड़ा और सिंगें सामान्य से छोटी और ऊपर में अंदर की ओर मुड़ी होती है। मस्तिष्क उभरा हुआ तथा दोनों कान छोटे मगर नुकीले होते हैं। पूंछ जमीन को करीब-करीब छूती हुई काली होती है।
इसका शरीर बड़ा और सुडौल होता है. गाय स्लेटी, भूरेऔर काले रंग की होती है, जबकि बैल गहरे रंग के होते हैं।
कृष्णा नस्ल की अन्य विशेषता
इस भारवाही नस्ल का विकास ओंगोले, गिर, कांकरेज एवं हल्लीकर नस्लों से किया गया है. कृष्णा बैल 2 टन सामान को आसानी से खीच कर ले जा सकते हैं. खुर की बनावट कड़क पथरीली जमीन में चलने के लिए उपयुक्त होती है
इसकी त्वचा में पसीने की ग्रंथियां अधिक संख्या में होती हैं इसलिए ये तेज धुप में लगातार काम कर सकते है. यह एक दोहरे उद्द्येश्य वाली नस्ल होती है बैलों को कृषि कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है.
कृष्णा गाय का दूध उत्पादन
बैल शक्ति और सहनशीलता के लिए जाने जाते हैं वहीँ गाये मध्यम दूध देती हैं. ये प्रतिदिन 4 - 5 लीटर दूध देती है |
इस नस्ल का ब्राज़ील एवं अमेरिकी देशों में बड़े पैमाने में निर्यात हुआ है लेकिन भारत में इसकी संख्या दिन ब दिन घटती जा रही है |काली मिट्टी वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से कार्य करने वाले इन पशुओं की घटती संख्या एक चिंता का विषय है और इसके लिए सरकार तथा लोगों को पहल करनी होगी ताकि इनका उत्थान हो सके |
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Posted by Unknown at 1:06 AM No comments :
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