Vechur Cow - A Rare And Supreme Cow Breed of Kerala (केरल की औषधीय गुणों वाली गाय )

वेचूर नस्ल की गाय 

वेचूर नस्ल की गाय का विकास केरल के कोट्टायम जिले के viakkom क्षेत्र में हुआ है | इसके प्रजनन क्षेत्र केरल के अलप्पुझा / कन्नूर, कोट्टायम, और कासरगोड जिले हैं। सींग पतले, छोटे और नीचे की ओर मुड़े रहते हैं।

वेचूर गाय की शारीरिक विशेषता : -

किसी-किसी पशु में सींग बहुत छोटे होते हैं और मुश्किल से दिखाई देते हैं। 124 सेमी की लंबाई, 85 से.मी की ऊंचाई.) और 130 किलोग्राम वजन के साथ वेचूर गाय को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में सबसे छोटे कद की गौ-प्रजाति माना जाता है ।

वेचूर गाय की अन्य विशेषता :-

इस प्रजाति की गायों पर जहां रोगों का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है, वहीं इन गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। यहां तक कि इसके पालने में बहुत ही कम खर्च आता है, जो एक बकरी पालने के खर्च जैसा ही होता है। हल्के लाल, काले और सफेद रंगों के खूबसूरत मेल की इस नस्ल की गायों का सिर लंबा और संकरा होता है, जबकि सिंगें छोटी, पूंछ लंबी और कान सामान्य लेकिन दिखने में आकर्षक होते हैं।

वेचुर पशु गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए अनुकूल माने जाते हैं. इस नस्ल के पशुओं को दूध और खाद के लिए पाला जाता है। वेचुर पशु की रोग प्रतिरोध एवं विभिन्न मौसम को सहने की क्षमता उत्तम होती  है. इसकी त्वचा से निकलना वाला द्रव कीटों को दूर रखता है | 

केरल कृषि विश्वविधालय ने इस नस्ल को संरक्षित किया है. देश में इस नस्ल की संख्या बहुत ही कम है। वेचुर की अब मुश्किल से 100 शुद्ध नस्लें ही बची हैं. वेचुर गाये दूध कम देती है लेकिन दूध उत्पादन दूसरी छोटी नस्लों के मुकाबले अपेक्षाकृत अधिक होता है।

वेचूर गाय का दूध उत्पादन :-

इनके दूध का इस्तेमाल केरल की परंपरागत दवायों में किया जाता है. वेचुर गाये प्रतिदिन 2-3 लीटर तक दूध देती हैं. दूसरी (cross breed ) नस्लों की तुलना में वेचूर नस्ल को पालने में बहोत कम खर्चा आता है क्योंकि यह नस्ल कम चारे में भी सरलता से पाली जा सकती है। इनके दूध में वसा प्रतिशत 4.7-5.8 होती है | वेचुर गायों के दूध में औषधीय गुण पाए जाते हैं और कम वसा होने के कारण वह पचने में बहोत आसन होता है | 

वेचूर गाय का बयंत और intercalving अवधि

पहले ब्यांत में इन गायों की उम्र तीन साल और inter-calving अवधि 14 महीने होती है छोटा कद, कम खर्च के में पलने के कारण घरों में इसका पालन सरल है, परन्तु दूध की मात्रा कम होने के कारण दुग्ध व्यवसाय के लिए इसे कम पाला जाता हैं।

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