Commercial Tomato Farming : How to Grow Tomatoes in India | टमाटर की खेती कैसे करें जानें
टमाटर की खेती | Tomato Farming in India
टमाटर अत्यन्त ही लोकपिय तथा पोषक तत्वों से युक्त फलदार सब्जी है। सम्पूर्ण भारत में इसे व्यापारिक स्तर पर उगाया जाता है। यह पोषक तत्वों में भरपूर होता है। इसमें आयरन, फॉस्फोरस,विटामिन 'ए' तथा 'सी' भरपूर मात्रा में पाया जाता है। टमाटर से केचप ,सॉस, चटनी, सूप, आदि पदार्थ तैयार किए जाते है।टमाटर की फसल अवधि 60 से 120 दिन होती है। पौधे रोपण के 2½ से 3 माह पश्चात् फल तैयार हो जाते है।
टमाटर की किस्में | Types of Tomatoes
देसी किस्म - पूसा रूबी, पूसा-120, पूसा शीतल, पूसा गौरव, अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली
संकर किस्म - पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड-4, आदि।
ज्यादा जानकारी के लिए सबसे नीचे हमारा विडियो देखें , विडियो देखकर ही आप इसे अच्छे से समझ पाएंगे
आवश्यकताए | Tomato Growing Needs
टमाटर की फसल की बुवाई में इन बातों का ध्यान देना चाहिए
बुवाई का उचित समय | Tomato Sowing Time in India
वर्षा ऋतु के लिये जून-जुलाई तथा शीत ऋतु के लिये जनवरी-फरवरी। फसल पाले रहित क्षेत्रों में उगायी जानी चाहिए या इसकी पाल से समुचित रक्षा करनी चाहिए।
बीजदर | Tomato Seeds Quantity
एक हेक्टयेर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु लगभग 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है।
आदर्श तापमान | Ideal Temperature for Growing Tomatoes
टमाटर की फसल पाला नहीं सहन कर सकती है। इसकी खेती हेतु आदर्श तापमान 18. से 27 डिग्री से.ग्रे. है। 21-24 डिग्री से.ग्रे तापक्रम पर टमाटर में लाल रंग सबसे अच्छा विकसित होता है। इन्हीं सब कारणों से सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं। तापमान 38 डिग्री से.ग्रे से अधिक होने पर अपरिपक्व फल एवं फूल गिर जाते हैं। यह मुख्यतया गर्मी की फसल है किन्तु अगर पाला न पड़े तो इसको वर्ष भर किसी भी समय उगाया जा सकता है।
भूमि | Ideal LAND/Soil for Tomato Plants
जल निकास वाली भूमि चाहे वह किसी भी प्रकार की हो, उसमें टमाटर का उत्पादन किया जा सकता है। चुनाव की दृष्टी से बलुई- दुमट भूमि सबसे अच्छी मानी गई है।
जल प्रबंधन व सिंचाई | Irrigation Water Requirement for Tomatoes
टमाटर की खेती में सिंचाई का विशेष महत्वा होता है | इसमें अधिक व कम सिंचाई दोनों ही हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं इसलिए सिंचाई मौसम के आधार पर इस तरह करनी चाहिए की खेत में नमी बनी रहे सामान्यतः गर्मी में प्रति सप्ताह और जाड़े में 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए |
यदि किसान सिंचाई के लिए drip या टपक पद्दति को प्रयोग में लाते हैं तो उसके बहोत अच्छे लाभ देखने को मिल सकते हैं |
खाद एवं उर्वरक | Manure Fertilizer for Tomatoes
टमाटर की फसल एक हेक्टर भूमि से 150 किलो नाइट्रोजन, 22 किलो फास्फोरस तथा 150 किलो पोटाश ग्रहण करती है। इसकी पूर्ति के लिए निम्न मात्रा में खाद तथा उर्वरक देना चाहिए :
गोबर की खाद या कम्पोस्ट – 200 क्विंटल प्रति हेक्टर
नाइट्रोजन –100 किलो प्रति हेक्टर
फास्फोरस – 50 किलो प्रति हेक्टर
पोटाश – 50 किलो प्रति हेक्टर
गोबर की खाद खेत की तैयारी के साथ, फास्फोरस तथा पोटाश और पौध रोपण से पहले तथा नाइट्रोजन तीन भागों में बांटकर पौधे लगने के दो सप्ताह बाद, एक माह बाद तथा दो माह बाद देना चाहिए।उर्वरक पौधे के चारों ओर तने से दूर फैलाकर देना चाहिए। उर्वरक देने के पश्चात् हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
प्रथम फसल समय - जुलाई-अगस्त
मुख्य फसल समय – सितम्बर-अक्टूबर
अंतिम फसल समय - नवम्बर-दिसम्बर
क्यारियों में जब पौधे 4 से 5 सप्ताह के हो जाए या 7 से 10 सेंटीमीटर के हो जाए खेत में रोपित करना चाहिए। पौधे रोपण के पश्चात् तुरन्त हल्की सिंचाई करनी चाहिए। एक स्थान पर एक ही पौधा लगाए।
फसल कटाई | Harvesting Period for Tomatoes
जब फलों का रंग हल्का लाल होना शुरू हो उस अवस्था मे फलों की तुड़ाई करें तथा फलों की ग्रेडिंग कर कीट व व्याधि ग्रस्त फलों दागी फलों छोटे आकार के फलों को छाटकर अलग करें। ग्रेडिंग किये फलों को केरैटे में भरकर अपने निकटतम सब्जी मण्डी या जिस मण्डी मे अच्छा टमाटर का भाव हो वहां ले जाकर बेचें।
टमाटर में लगने वाले प्रमुख कीट हैं - हरा तैला, सफेद मक्खी, फल छेदक कीट एंव तम्बाकू की इल्ली
कीटों से बचाव के लिए :-
• गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
• पौधशाला की क्यारियॉ भूमि धरातल से ऊंची रखे एवं फोर्मेल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन कर लें।
• क्यारियों को मार्च अप्रैल माह मे पॉलीथीन शीट से ढके भू-तपन के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
• गोबर की खाद मे ट्राइकोडर्मा मिलाकर क्यारी में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
• पौधशाला की मिट्टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिड़काव करें।
• पौध रोपण के समय पौध की जड़ों को कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखें।
• पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से ३ छिड़काव imidacloprid या एसीफेट के करें। माइट की उपस्थिति होने पर ओमाइट का छिड़काव करें।
• फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए indoxacarb या profenofos का छिड़काव ब्याधि के उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब से करना चाहिए। खड़ी फसल मेंं रोग के लक्षण पाये जाने पर मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिड़काव करें। चूर्णी फंफूद होने सल्फर धोल का छिड़काव करें।
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Posted by Unknown at 5:04 AM No comments :
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